बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

गोरखालैंड के सपने

सुर नर मुनि सब की यह रीती , स्वार्थ लाग करे सब प्रीति । गोस्वमी जी की बात को नकारने वाले असुर समाज की बढ़ती हुई संख्या लाख प्रयास कर ले मगर सत्य यही है की मदर अपने जातिगत स्वार्थ साधन के लिए ही असहाय लोगो से प्रीति करने का स्वांग करती रही है , जब स्वार्थ के साधन से देवता भी अलग नहीं हैं फिर मदर टेरेसा तो मानव थीं , कंचन कामिनी और कीर्ति ये तीन प्रकार की कर्म प्रेरणा है मदर की तीनो पूर्ति भारत से हो रही थी , उनकी अपनी समाज में उन्हें अगर कीर्ति मिली तो दूसरी तरफ आपने मानवता को त्याग कर अपकीर्ति का भागी बनना अपने जातीय स्वार्थ के लिए स्वीकार किया , मगर हम अपनी गलती को छुपाने के लिए अब ये भासण देकर क्या साबित करना चाहते हैं समय रहते धर्मांतरण  को न रोक पाना हमारी फितरत है और हम अपनी इस फितरत को कैसे छोड़ दें हमारे आराध्य भोलेनाथ , भगवान राम और कृष्ण के मंदिरों के साथ लाखों मंदिर टूट कर मस्जिदें बनतीं रहीं , एमए की इतिहास में लिखा है की जमा मस्जिद की सीढ़ियों में देस के कोने कोने से मूर्तियां मंगवाकर लगाई गई तब भी हमें अपनी फितरत को त्यागना गवारा नहीं हुआ , बटवारे के वाद भी शामिल खाता अकेला गांधी नहीं उस समय का प्रत्येक संसद सदस्य और भारत के नेतृत्व से जुड़ा हर आदमी बेईमानी के बटवारे का दोषी है , लोह पुरुष उस समय तेल में ब्यस्त हो गए थे फिर भी हमारे आदर्श हैं , गांधी नेहरू तो समलैंगिकों की तरह अपने में मस्त थे और ऐसी मस्ती भरे माहोल को गोडसे  ने बर्दास्त नहीं किया , भारत का शेर फांसी चढ़ा दिया गया हम देखते रहे , पड़ोसी के बाप का गम हम अपना बाप समझ कर मनाते रहे , जमीन के मामले में हम ८०  प्रतिशत जमीन गवां चुके हैं ,इतना सब होने के बाद क्या आपको लगता है की हमारी फितरत बदलेगी हम आप गोरखा बनकर नेपाल जैसे हिन्दू राष्ट्र के सपने तो देख सकते हैं मगर हकीकत में गोडसे बना दिए जायेंगे  / फिर भी हमारे इरादे बुलंद हैं क्योंकि -- प्रभु इक्षा भावी बलवाना .

सोमवार, 23 फ़रवरी 2015

 

माता पिता की सेवा और सनातन धर्म 

सनातन धर्म पर पर मुस्लिम प्रभाव   ---

लगभग १००० साल तक भारत पर मुसलमान शासकों ने शासन किया और हमारी संस्कृति और परम्पराओं को परिबर्तित करने के लिए साम दाम दण्ड भेद का सहारा लिया यह सभी को ज्ञात है मगर   मुसलमानों से प्रभावित होकर या भोग से भ्रमित होकर हिन्दू माता पिता ने   अपनी मूल परम्परा को त्यागकर मुस्लिम परम्परा को संयुक्त परिवार की परम्परा में शामिल किया हे।  माता पिता के संदर्भ में गोस्वमी जी लिखते हैं --- मातु  पिता  प्रभु गुरु की वाणी , बिना बिचार किये शुभ  जानी।  गोस्वमी जी के उक्त बचनों के अर्थ की आड़ में माता पिता ने सनातम धर्म की सर्वोत्तम जीवन शैली ग्रहस्त आश्रम के अंग  बानप्रस्थ आश्रम को नकार दिया हे या उसकी उपयोगिता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर मुस्लिम प्रभाव से प्रभावित होने का सबूत दिया है आइये दोनों धर्मो की ब्याख्या देखें , हिन्दू धर्म की परम्पराओं के मानक ग्रन्थ मनु स्मृति के अनुसार -- आपके बच्चो की शादी करने  के बाद जब आपका पुत्र पिता बन जाये  तब आपकी पारिवारिक जिम्मेदारी पूर्ण हो जाती हे इसके बाद आप घर और समस्त गृहस्त के सुख भोग का त्याग करके बानप्रस्थ आश्रम अर्तार्थ निर्जन स्थान या बन में सन्यासी की भांति   भगवान का भजन करते हुए शेष जीवन  ब्यतीत करें , बच्चों के पालन - पोषण  के संबंध में हमारी मान्यता हे की हमारे ऊपर  माता पिता का ऋण होता हे , जब हम अपने बच्चों का पालन पोसन करते हे तभी हम माता पिता के ऋण से मुक्त होते हैं  और इस प्रक्रिया से मानव जाती का अस्तित्व  निरंतर बिकसित होता रहता है।  दूसरी तरफ इस्लाम धर्म कहता है की आदमी को पत्नी और बच्चे जिनका वह पालनकर्ता हे खुदा  ने उसकी खिदमत के लिए दिए हैं  ,ऐसी मान्यता को मानकर मुसलमान इस्त्री को शुख भोगने और बच्चे पैदा करने की मशीन समझकर उसे बुरका के साथ अनेक प्रतिबंधों में रखता है  और जीवन पर्यन्त उनसे खिदमत करवाता है।  हमारी बदली हुए पारिवारिक परम्पराओं का प्रभाव हिंदी सिनेमा में में भी देखने को मिलता है अभी हाल  में  ऐसी पृष्टभूमि पर बनी अमिताभ बच्चन की फिल्म वागवान जो की हिन्दू परिवार की कहानी हे में माता - पिता को कोई लड़का साथ नहीं रखना चाहता और फिल्म आजकल के बच्चों को दोषी करार देती हे जबकि हमारी सनातन मान्यताओं के अनुसार बच्चों के साथ रहने की सोच ही गलत है।  बानप्रस्थ के संबंध में कहा  गया है की आप को बन में न जाकर केवल बच्चों से अलग सभी बिस्यों में आसक्ति को त्यागकर रहना है।  आज हिन्दू परिवार ग्रह कलह से त्रस्त है जिसमे सास - बहू  के संबंध नित नै कड़वाहटों से भरते जा रहे हैं  . हिन्दू परिवारों की अशांति का कारण हमारे बुजुर्गों द्वारा मुस्लिम प्रभाव का अन्धानुशरण ही  है