सुर नर मुनि सब की यह रीती , स्वार्थ लाग करे सब प्रीति । गोस्वमी जी की बात को नकारने वाले असुर समाज की बढ़ती हुई संख्या लाख प्रयास कर ले मगर सत्य यही है की मदर अपने जातिगत स्वार्थ साधन के लिए ही असहाय लोगो से प्रीति करने का स्वांग करती रही है , जब स्वार्थ के साधन से देवता भी अलग नहीं हैं फिर मदर टेरेसा तो मानव थीं , कंचन कामिनी और कीर्ति ये तीन प्रकार की कर्म प्रेरणा है मदर की तीनो पूर्ति भारत से हो रही थी , उनकी अपनी समाज में उन्हें अगर कीर्ति मिली तो दूसरी तरफ आपने मानवता को त्याग कर अपकीर्ति का भागी बनना अपने जातीय स्वार्थ के लिए स्वीकार किया , मगर हम अपनी गलती को छुपाने के लिए अब ये भासण देकर क्या साबित करना चाहते हैं समय रहते धर्मांतरण को न रोक पाना हमारी फितरत है और हम अपनी इस फितरत को कैसे छोड़ दें हमारे आराध्य भोलेनाथ , भगवान राम और कृष्ण के मंदिरों के साथ लाखों मंदिर टूट कर मस्जिदें बनतीं रहीं , एमए की इतिहास में लिखा है की जमा मस्जिद की सीढ़ियों में देस के कोने कोने से मूर्तियां मंगवाकर लगाई गई तब भी हमें अपनी फितरत को त्यागना गवारा नहीं हुआ , बटवारे के वाद भी शामिल खाता अकेला गांधी नहीं उस समय का प्रत्येक संसद सदस्य और भारत के नेतृत्व से जुड़ा हर आदमी बेईमानी के बटवारे का दोषी है , लोह पुरुष उस समय तेल में ब्यस्त हो गए थे फिर भी हमारे आदर्श हैं , गांधी नेहरू तो समलैंगिकों की तरह अपने में मस्त थे और ऐसी मस्ती भरे माहोल को गोडसे ने बर्दास्त नहीं किया , भारत का शेर फांसी चढ़ा दिया गया हम देखते रहे , पड़ोसी के बाप का गम हम अपना बाप समझ कर मनाते रहे , जमीन के मामले में हम ८० प्रतिशत जमीन गवां चुके हैं ,इतना सब होने के बाद क्या आपको लगता है की हमारी फितरत बदलेगी हम आप गोरखा बनकर नेपाल जैसे हिन्दू राष्ट्र के सपने तो देख सकते हैं मगर हकीकत में गोडसे बना दिए जायेंगे / फिर भी हमारे इरादे बुलंद हैं क्योंकि -- प्रभु इक्षा भावी बलवाना .
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